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    नई दिल्ली। 

    हमेशा जोश और जुनून से सराबोर रहने वाली युवा पीढ़ी देश का भविष्य होती हैं। आंखों में उम्मीद के सपने, नयी उड़ान भरता हुआ मन, कुछ कर दिखाने का दमखम और दुनिया को अपनी मुठ्ठी  में करने का साहस, हरदम कुछ नया कर गुजरने की चाहत, नित नई-नई चुनौतियों का सामना करने तैयार रहना और जो एक बार करने की ठान लें तो लाख मुश्किलें भी उसको बदल न पाएं। शायद आज की युवा पीढ़ी को अपनी इस शक्ति का अंदाजा नहीं है। देश की युवा शक्ति ही समाज और देश को नई दिशा देने का सबसे बड़ा औजार है। वह अगर चाहे तो इस देश की सारी रूप-रेखा बदल सकती है। अपने हौसले और जज्बे से समाज में फैली विसंगतियों, असमानता, अशिक्षा, अपराध आदि बुराइयों को जड़ से उखाड़ फेंक सकती है। युवा शब्द ही मन में उडान और उमंग पैदा करता है। उम्र का यही वह दौर है जब न केवल उस युवा के बल्कि उसके राष्ट्र का भविष्य तय किया जा सकता है। आज के भारत को युवा भारत कहा जाता है क्योंकि हमारे देश में असम्भव को संभव में बदलने वाले युवाओं की संख्या  सर्वाधिक है। आंकड़ों के अनुसार भारत की 65 प्रतिशत जनसंख्या 35 वर्ष आयु तक के युवकों की और 25 साल उम्र के नौजवानों की संख्या 50 प्रतिशत से भी अधिक है। ऐसे में यह प्रश्न महत्वपूर्ण है कि युवा शक्ति वरदान है या चुनौती? महत्वपूर्ण इसलिए भी यदि युवा शक्ति का सही दिशा में उपयोग न किया जाए तो इनका जरा सा भी भटकाव राष्ट्र के भविष्य को अनिश्चित कर सकता है।
    लेकिन आज युवा पीढ़ी शायद इन बातों से अनजान है। एक ओर वह अपने कैरियर को बेहतर दिशा देने के लिए संघर्षरत है, कड़ी मेहनत करती है और जोश, जुनून, दृढ़ संकल्प, इच्छाशक्ति से अपने लक्ष्य को पाने का हौसला रखती है वहीँ कुछ युवा नशा, वासना, लालच, हिंसा के कर्म में शामिल हो गए हैं। पैसे वालों के लिए एडवेंचर और मनोरंजन जीवन का मुख्य ध्येय बन रहे हैं और उनकी देखादेखी विपन्न युवा भी यही आकांक्षा पाल बैठा है। स्वामी विवेकानंद युवाओं से बहुत प्यार करते थे। वे कहा करते थे विश्व मंच पर भारत की पुनर्प्रतिष्ठा में युवाओं की बहुत बड़ी भूमिका है। विवेकानंद का मत था- मंदिर जाने से ज्यादा जरूरी है युवा फुटबॉल खेले। युवाओं के स्नायु फौलादी होना चाहिए क्योंकि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन निवास करता है। दुर्भाग्य से आज अधिसंख्य लोगों के जीवन से खेल-कूद, व्यायाम दूर होते जा रहे हैं। आज तो पूरे-पूरे दिन ही मोबाइल, इंटरनेट, फेसबुक, व्हाट्स एप, ट्विटर आदि युवाओं को व्यस्त रखते हैं। आज आवश्यकता इस बात की है कि हमारा युवा इस देश की परिस्थियों ठीक से समझे। विगत 67 वर्षों में जहाँ भारतीय लोकतंत्र की जड़ें मजबूत हुईं, वहीं राजनीति में कई तरह की विकृतियाँ भी घर करती गईं। युवा वर्ग प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप से इस विकृति से अत्यधिक प्रभावित हुआ है। यूं तो अंग्रेजों से आजादी मिले 67 वर्ष बीत गए लेकिन हमारा आर्थिक-सामाजिक आजादी का सपना अभी भी अधूरा है। आजादी मिलने के बाद के गत साढ़े छह दशकों से अधिक का ये सफरनामा कई कड़वे-मीठे अनुभवों और अच्छी-बुरी घटनाओं का संयोग रहा है। लगभग 25 फीसदी आबादी गरीबी रेखा से नीचे गुजर-बसर कर रही है। जाहिर है आज समाज और सरकार को समरसता और नागरिकों के गरिमापूर्ण जीवन-यापन के नैसर्गिक अधिकार को सुरक्षित रखने के लिए लगातार प्रयास करने की जरूरत है। लेकिन हम देख रहे हैं कि अधिसंख्य नागरिकों का जीवनस्तर अभी भी बहुत दयनीय अवस्था में है। कानून व्यवस्था एक बहुत बड़ी चुनौती है हमारे सामने। अपराध लगातार बढ़ रहे हैं। विवेकहीनता पैदा हो रही है। मनुष्य आज समाज के बारे में नहीं सोच रहा है वह सिर्फ और सिर्फ व्यक्तिगत स्वार्थ और सुख-सुविधाओं के लिए कर्म करता है। राजनीतिक  इच्छाशक्ति की कमी के कारण देश में भ्रष्टाचार जैसी बुराइयां बढ़ रही हैं। युवा वर्ग इस सबसे अनजान नहीं है लेकिन वह इस स्थिति को बदलने का प्रयत्न करता नहीं दिखाई देता। भारत एक बहुत ही असाधारण लोकतंत्र है, जिसकी कुछ बहुत ही मजबूत लोकतांत्रिक विशेषताएँ हैं वहीँ कुछ बहुत ही अलोकतांत्रिक विशेषताएँ भी हैं। कुल मिलाकर देखा जाए तो लोकतांत्रिक मूल्यों के साथ-साथ तमाम तरह की मुश्किलें ही आजाद भारत को एक असाधारण लोकतंत्र बनाती हैं। समस्याएं अनेकों हैं लेकिन उनका उचित और उपयुक्त समाधान करने की कोई कारगर पहल नहीं हो रही है। आजादी के 20-25 साल बाद मजदूरों और किसानों के संघर्ष, आर्थिक मुद्दों पर आंदोलन हुए थे। इसके बाद सांस्कृतिक मुद्दों पर असंतोष ज्यादा देखा गया है। विभिन्न क्षेत्रों में आर्थिक विकास के लिहाज से फर्क तो रहा है लेकिन अधिकांश जनांदोलन सामाजिक-सांस्कृतिक मुद्दों पर होते रहे हैं। दीन-हीन का थैला छोड़ कुछ लोगों ने विकास के पंख लगाकर अंतरिक्ष तक की यात्रा की है। संचार क्रांति के विशेषज्ञ बनकर दुनिया में झंडे गाड़े हैं। सुविधाओं के लैपटॉप थाम लिए, पहाड़ों से ऊँची इमारतें खड़ी कर ली हैं...वे लोग हैं जो इस देश को इंडिया कहते हैं। वे अंग्रेजी बोलते हैं हर पाश्चात्य वृत्तिा की नकल करते हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था में आई तेजी और शेयर बाजार से मिलते फायदों की वजह से भारत में करोड़पतियों की संख्या एक लाख का ऑंकड़ा पार कर गई है। लेकिन तेज रफ्तार आर्थिक विकास के बावजूद भारत की 22 फीसदी से ज्यादा आबादी अब भी गरीबी रेखा से नीचे गुजर-बसर कर रही है। साथ ही कृषि क्षेत्र में खास प्रगति होती नहीं दिखाई दे रही है। कृषि विकास दर महज 2.7 फीसदी पर अटकी हुई है जबकि खेती पर भारत की 65 फीसदी से ज्यादा आबादी निर्भर है। एक बहुल वर्ग अभी भी साफ पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोटी, कपड़ा, एक अदद पक्की छत और मूलभूत अधिकारों के लिए रात-दिन सपने बुन रहा है। वह बदबूदार नालों के किनारे स्लम से मुक्ति के लिए टकटकी लगाए बैठा है। कंप्यूटर का नाम उसने नहीं सुना, उसे इंतजार है अपने गाँव तक बिजली के खंभों के आने का ताकि रात ढले घर में रोशनी हो। दिन में चिडिय़ों की कतारें उन तारों पर झूलें। किताबों और पाठशाला तक हर बच्चे की पहुंच हो, दवा के बिना कोई न मरे और भूख से कोई मरने को मजबूर न हो... इस सपेरों और भिखमंगों के देश को भारत कहते हैं। युवाओं को इन स्थितियों को होगा।  समाज और देश निर्माण में अपना योगदान करना होगा। देश सीमा रेखा भर तो नहीं होता। वह समाज और मनुष्यों से निर्मित होता है। आज के युवा को अपनी उन्नति और प्रगति के साथ इस भारत का नक्शा बदलने का संकल्प लेना होगा तभी यह भारत दुनिया का सिरमौर बन सकेगा। तभी हम सच्चे अर्थों में आजादी का आनंद ले पाएंगे।